Sunday 6 March 2016

राजा भोज और गंगु तेलि!

एक दिन राजा भोज वेश बदल कर अपने राज्य की शेर पर निकले | तब उन्हे एक व्रुद्ध व्यक्ति भारी लकडीयो के बोज को ले जाते दिखे | वो अत्यन्त मेंहन्तू और गरीब प्रतित हो रहे थे इस्लिये राजा ने उनसे नम्रता पूर्वक पूछा की "जी यज्मान आप कोन हे?"

उस व्यक्ति ने उत्तर दिया की " में राजा भोज हुं |" यह सुनकर राजा भोज चकित हो गये उन्होने आश्चर्य मे पूछा की " अगर तुम राजा भोज हो तो तुम्हारी आय कितनी हे? तुम्हारा दरबार कहा हे ?" तब गंगु तेलि ने उत्तर दिया की "मेरा दरबार यहा से 100 पग की दूरी पर हे और मेरी आय 6 पैसे हे | तब राजा भोज को विचार आया की "आखिर 6 पैसे कमाने वाला व्यक्ति खुद को राजा केसे मान सकता हे , जबकि राजा को कइ जटील समस्याऔ का सामना करना पडता हे!" तब राजा भोज ने पूछा की " तुम अपना राज्य केसे चलाते हो?"

तब गंगु तेलि ने उत्तर दिया की "में एक पैसा अपने मंत्री को देता हू , एक पैसे से अपना उधार चुकाता हू, एक पैसा मे अपने ऋणी को देता हुं और एक पैसा अपने खर्च के लिये रखता हू तो एक पैसे की मे बचत करता हू और मे एक पैसा अपने अतिथीओ के लिये बचाता हुं | तब राजा भोज को ये बात रोचक लगी तो उसने पूछा की "तुम्हारा उधार चुकाते हो तो तुम दुसरो को ऋण केसे दे शक्ते हो?"

तब उस व्यक्ति ने उत्तर दिया की "मेरे माता-पिता ने मुजे पाल पोष कर बडा किया हे मुजे इस लायक बनाया की मे अब मे खुद कमा सकू | लेकिन उन्हे ये भी आशा थी की मे बुढापे का सहारा बनू | मे उन्का पित्रूऋण चुका रहा हुं | ये मेरा उधार हे जो मे रोज एक पैसा देकर चुकाता हुं | "

तब राजा भोज ने आतुरता पूर्वक पुछा की "तुम्हारा ऋणी कोन हे ?" तब गंगु तेलि ने उत्तर दिया की " मेरा ऋणी मेरा पुत्र हे , मेरा ये कर्तव्य हे की मे उसे आत्मनिर्भर बनाऊ | किंतु मुजे ये आशा हे जेसे मे अपना पित्रूऋण चुका रहा हु वो भी वेसे ही अपना ऋण चुकाये |"

राजा भोज ने उसे पूछा की " और तुम्हारा मंत्री कोन हे?" तब गंगु तेलि ने कहा की "मेरी मंत्री मेरी पत्नी हे जो मेरा संसार चलाती हे | मे अपने सारे कार्यो के लिये उस पर निर्भर हुं |"

तब राजा भोज ने कहा "और सुनाओ |" तब गंगु तेलि ने कहा की "मे एक पैसा अपने खर्च के लिये रखता हू और एक पैसा मे भविस्य के लिये बचाता हू, जो व्यक्ति अपने भविस्य के लिये बचत नही करता वो व्यक्तिसबसे बडा मूर्ख हे! " गंगु तेलि ने कहा की "मे एक पैसा अतिथीयो के लिये जमा रखता हुं , क्युकि अतिथियो का सम्मान करना हमारा कर्तव्य हे |क्युकि जब मे किसी के यहा अतिथि बनके जाता हुं तो मे भी अपने सत्कार की आशा रखता हुं

उस व्यक्ति को जान कर राजा भोज को अहसास हुआ की व्यक्ति अगर चाहे तो न्यूनतम संसाधनो के साथ भी व्यक्ति उत्त्चतं जीवन जी सकता हे |

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