Saturday 26 March 2016

सहदेव की विवर्षता |

जब दुर्योधन ने धर्मराज युधिस्ठिर को ध्युत खेलने का निमंत्रण भेजा तब सहदेव को भविस्य मे होने वाले द्रौपदी के अपमान का बोध हो गया | लेकिन उसे मिले श्राप के कारण वो सबको बता नही सक्ता था की कल सभा मे क्या होने वाला हे , अन्यथा उसकी भविस्य देखने की शक्ति चली जाती |

जब ध्युत का निमंत्रण आया तब युधिस्ठिर ने सहदेव को बालक समज कर उसे सभा मे बुलाया ही नही जिसके कारण वह बता नही सकता था की कल ड्यूत मे क्या होगा | शायद युधिस्ठिर ने सोचा की "इस वर्ष सहदेव द्रोपदि के साथ समय व्यतीत कर रहा हे इस्लिये उसे रात्री को बुलाना उचित नही होगा |"

जब सहदेव ने द्रौपदी को देखा तो सोचा की " जो व्यक्ति अपनी पत्नी का मान न बचा सके वो व्यक्ति उसे अपनी पत्नी कहेने का भी अधिकारी नही हे |" तब सहदेव को विचार आया की "भले मेरी ये शक्ति चली जाये पर मे द्रौपदी का मान भंग होने नही दे शक्ता !" ये सोचकर वो युधिस्ठिर के कक्ष की और चला ही था की उसे ये बात याद आयि की "नियति की कोइ बदल नही सक्ता | जो नियति मे लिखा हे वो होकर ही रहता हे चाहे व्यक्ति कुछ भी करे |"

जिसे सोचकर वो फिर रुक गया अब उसे आंत्रिक पिडा हो रही थी की उसे सब ग्यात होते हुए भी वो द्रौपदी की रक्षा करने के लिये कुछ नही कर सकता | अब सहदेव की स्तिथी एसी थी की वो सत्य छुपा भी नही पा रहा था और बता भी नही पा रहा था | ये बात सोच-सोच कर उसके मस्तीस्क मे पिडा होने लगी थी | ये पिडा अब इतनी बड़ चुकी थी की अगर सहदेव को लगा की अगर उसने ने कुछ नही किया तो उसका दिमाग पिडा से फट जायेगा |

तब सहदेव ने मदिरा पीने का निश्चय किया | उसने इतनी मदिरा पी की उसको ज्ञान ही नही रहा की वो किस स्थिति मे हे और वो मुर्छीत हो गया |

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